शनिवार, 27 दिसंबर 2008

बुद्धि की दुर्बलता

मानव जब अपने सामने किसी चीज़ को देख कर उस पर ईश्वर का अनुमान करने लगता है तब वह पथभ्रष्ट हो जाता है। जी हाँ ! बुद्धि से सोचना अच्छी बात है, और बुद्धि से ही ईश्वर का ज्ञान प्राप्त हो सकता है, हम क्या थ? संसार क्यों है ? इसे किसने बनाया? हमारे और आप जैसे रूप रखने वाले मानव ने ? इन प्रश्नों पर दृष्टि डालने से स्वयं ज्ञात होता है कि हम सब को ईश्वर और श्रृष्टा केवल एक है और वही पूरे संसार को चला रहा है, तथा वही एक दिन इसे नष्ट भी करेगा, वही हमारे ऊपर हर प्रकार का उपकार करता है, वह दयालू और कृपाशील है।
मानव जब अपनी तुच्छ बुद्धि से ईश्वर के सम्बन्ध में अनुमान लगाना शुरू कर देता है तो वह उसे भौतिक रूप में देखने की चेष्टा करता है, कारणवश वह उसको मुर्ति आदि में सीमित करने लगता है। हालांकि ईश्वर जो सम्पूर्ण संसार का सृष्टिकर्ता है उसके सम्बन्ध में ऐसा सोचा नहीं जो सकता. (न तस्य प्रतिमा अस्ति ) ईश्वर की कोई मुर्ति नहीं बन सकती।
ईश्वर एक है, उसको किसी की आवश्यकता नहीं पड़ती, उसके पास माता पिता नहीं, न उसके पास सन्तान है , और उसकी पूजा में उसका कोई भागीदार नहीं (क़ुरआन : सूरः अल-इख़लास)

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